नैनीताल ::- भारतीय संस्कृति श्रद्धा भाव से परिपूर्ण है । तथा प्रकृति की पूजा का विधान है । आयुर्वेद की जड़े भारत है जो जीवन को पौधो से सीडी जोड़ता है मानव जीवन को निरोगी बनाता है तथा भारतीय परंपरा का हिस्सा है शक्ति की प्रतीक भगवती को नवरात्रि में नव दुर्गा दिवस के रूप में नौ औषधियों के पौधे को नवदुर्गा कहा गया है जिसमें
प्रथम शैलपुत्री (हरड़) जिसका बानस्पतिक नाम टर्मिनलिया चिबुला है। कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है। द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) जिसका वानस्पतिक नाम बाकोपा मोनेरियो है ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है। इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है। तृतीय चंद्रघंटा (चंदुसूर) जिसे लेपिडियम सतिवुम है । यह एक ऎसा पौधा है जो धनिए के समान है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं। चतुर्थ
कूष्मांडा (पेठा) बेनिकासा हिस्पीड़ा है । इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं, इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रोगों में यह अमृत समान है, आज कल सैक्रीन से बनने वाला पेठा नहीं खाये घर में बनाये।
पंचम स्कंदमाता (अलसी) : लिनम यूजिटेटिसिम है। देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है। इसमे फाइबर की मात्रा ज्यादा होने से इसे सभी को भोजन के पश्चात काले नमक सेभूंजकर प्रतिदिन सुबह शाम लेना चाहिए यह खून भी साफ करती है।
चट्टी कात्यायनी (मोइया) : तैमारिक ऑटिकुला है देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं.यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है।
सप्तम कालरात्रि (नागदौन) यूफोर्बिया थुमलोई है। यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं.यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है। यह पाइल्स के लिये भी रामबाण औषधि है इसे स्थानीय भाषा जबलपुर में दूधी कहा जाता है।
आठवी महागौरी (तुलसी) ओसिमम सैंक्टम है। तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र,ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है. एकादशी को छोडकर प्रतिदिन सुबह ग्रहण करना चाहिए।
नवम सिद्धिदात्री (शतावरी) अस्परागुस रेसमोसिस है :दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है)। प्रकृति गुणों से भरी है तथा भगवान इस मध्यम से आते है हमारे पास उनके लिए यह प्राकृतिक आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन कर स्वयं को स्वस्थ तथा सकती की देवी दुर्गा का पूजन कर सकते है ।