Tuesday, March 28, 2023
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नैनीताल : विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर कुविवि के लॉ इंस्टिट्यूट में संगोष्ठी का आयोजन!
तिब्बत में मानवाधिकार हनन विषय पर वक्ताओं एवं विद्यार्थियों ने रखे अपने विचार

नैनीताल ::- विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय के डॉ. राजेंद्र प्रसाद लॉ इंस्टिट्यूट में भारत- तिब्बत मैत्री संघ के तत्वावधान में “तिब्बत में मानवाधिकार हनन” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का शुभारम्भ मुख्य अतिथि भारत तिब्बत समन्वय केंद्र की डिप्टी कोऑर्डिनेटर ताशी देकयी, भारत- तिब्बत मैत्री संघ के प्रदेश अध्यक्ष नवीन पनेरु एवं विभागाध्यक्ष डॉ.

दीपाक्षी जोशी द्वारा किया गया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता एवं भारत तिब्बत समन्वय केंद्र की डिप्टी कोऑर्डिनेटर ताशी देकयी ने संगोष्ठी की शुरुआत में उपस्थित शिक्षकों एवं विद्यार्थियों का आभार एवं स्वागत करते हुए परम पावन दलाई लामा, निर्वासित तिब्बती सरकार (केंद्रीय तिब्बती प्रशासन) और निर्वासित तिब्बती संसद के बारे में जानकारी दी। डिप्टी कोऑर्डिनेटर ताशी देकयी ने बताया कि किस प्रकार चीन द्वारा तिब्बत की सभ्यता और संस्कृति को कम्युनिज्म में तब्दील किया जा रहा है। किस प्रकार चीन की रिपब्लिक-आर्मी वहां के नौजवानों को वामपंथी रंग में रंग कर तिब्बत की मौलिकता, वहां की वनस्पति को नष्ट कर रही है और तिब्बती जनसंख्या में असंतुलन पैदा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हजारों तिब्बती नौजवानों को यातना शिविरों में यातनाएं दी जा रही हैं। ऐसी बर्बरता मानवता पर कलंक है।

भारत- तिब्बत मैत्री संघ के प्रदेश अध्यक्ष श्री नवीन पनेरु ने कहा कि भारत के लोग याद रखें कि भारत की 4000 वर्ग किलोमीटर सीमा जो आज चीन से लग रही है वह सीमा 1950 से पहले सिर्फ तिब्बत-एक स्वतंत्र देश से लगती थी। चीन ने तिब्बत को धोखे से हड़प कर उसको अपने नक्शे में शामिल कर लिया एवं तिब्बत का अस्तित्व मिटा दिया। अब चीन की कुदृष्टि अरुणाचल, सिक्किम और भूटान पर है। उन्होंने कहा कि तिब्बत की भाषा, संस्कृति और धर्म का उदगम भारत की प्राचीन आध्यात्मिक भूमि से है इसलिए भारत एवं तिब्बत में गुरु-शिष्य का रिश्ता है। तिब्बत और कैलाश मानसरोवर का अनादि काल से भारत के साथ पौराणिक और आध्यात्मिक संबंध रहा है। उन्होंने कहा कि जन-जन को तिब्बत और कैलाश मानसरोवर की मुक्ति अभियान के साथ जोड़ना होगा।

इस अवसर पर हिमालय की सामरिक और राजनीतिक महत्ता की तरफ देश का ध्यान आकर्षित करने की ज़रूरत पर बल देते हुए विशिष्ट वक्ता केके पांडेय ने कहा कि बिना तिब्बत की आजादी के हिमालय की सुरक्षा नहीं की जा सकती। भारत और चीन के बीच शांति का रास्ता भी तिब्बत से ही गुजरता है। उन्होंने कहा कि कहा कि तिब्बत में हो रहे मानवाधिकार हनन पर चुप नहीं बैठ सकते है, तिब्बती मुद्दे को जीवित रखा जाना चाहिए और सभी भारतवासियों को तिब्बत का समाधान होने तक प्रयास करते रहना चाहिए। केके पांडेय ने कहा कि तिब्बत के मुक्ति साधकों ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद 1959 से 2022 के बीच की लम्बी अवधि में दुनिया के हर महाद्वीप में अपनी पीड़ा का सच फैला दिया है। आइये, हम भी भारत–तिब्बत मैत्री का परचम देश के हर शहर-गांव में फहराएं।

संगोष्ठी में उपस्थित अतिथियों एवं वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ.

दीपाक्षी जोशी ने कहा कि आज विश्व में सर्वाधिक मानवाधिकार हनन की घटनाएं तिब्बत में हो रही है। कोई भी सभ्य समाज इसको अनदेखा नहीं कर सकता है। अपने आत्मसम्मान और गौरव को त्याग कर जीना कितना कठिन है इसका एहसास भी बहुत कम लोगों को है। उन्होंने सभी को भारत- तिब्बत मैत्री संघ के साथ जुड़ने का आवाहन किया तथा संघ द्वारा इस निमित्त किए जा रहे कार्यों हेतु आभार प्रकट किया।

इस अवसर पर डॉ.सुरेश चंद्र पांडे, डॉ.उज्मा, डॉ.वीके रंजन, सागर पाटनी, जीसी पांडे,केपी पांडे, नीरज जोशी, देवेंद्र आर्या, देवेंद्र साह के साथ ही बीएएलएलबी(ऑनर्स), लाइब्रेरी एवं बीबीए पाठ्यक्रम के विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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