Monday, March 27, 2023
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अल्मोड़ा : अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर डिग्निटी, फ्रीडम एंड जस्टिस फ़ॉर ऑल विषय पर एकदिवसीय संगोष्ठी

अल्मोड़ा ::- आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा भूगोल विभाग के सभागार में अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर डिग्निटी, फ्रीडम एंड जस्टिस फ़ॉर ऑल विषय पर एकदिवसीय संगोष्ठी आयोजित हुई। कार्यक्रम में मुख्य मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रो. जगत सिंह बिष्ट, कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रूप में अधिष्ठाता प्रशासन प्रो.प्रवीण सिंह बिष्ट, मुख्य वक्ता रूप में विधि संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो.जेएस बिष्ट, संगोष्ठी के अध्यक्ष एवं संयोजन प्रो. विद्याधर सिंह नेगी, डॉ चंद्र प्रकाश फूलोरिया, कला संकायाध्यक्ष प्रो अरविंद सिंह अधिकारी, प्रो के एन पांडे आदि ने सरस्वती चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर एवं पुष्पार्पण कर उद्घाटन किया। आयोजकों एवं विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा मुख्य अतिथि रूप में पधारे हुए नवनियुक्त कुलपति प्रो बिष्ट को शॉल ओढ़ाकर एवं प्रतीक चिन्ह देकर स्वागत एवं अभिनंदन किया।

मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.जेएस बिष्ट ने मानवाधिकार के विषय में विस्तार से व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा मानवाधिकार आज के परिप्रेक्ष्य में काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि समाज में कई प्रकार की घटनाएं प्रकाश में निरन्तर आ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मानवाधिकार को सार्वभौमिक रूप से सबके लिए प्रदान किये हैं। किसी जातिगत धारणा, धर्म, सम्प्रदाय, व्यक्ति विशेष आदि से ऊपर उठकर सभी के लिए मानवाधिकारों की व्यवस्था की गई है। सुप्रीम कोर्ट इसकी संरक्षक है। मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट स्वतः ही संज्ञान लेती है, ऐसे कई उद्धरण हमारे देश में अमूमन दिखाई पड़ते हैं।
अधिष्ठाता प्रशासन प्रो प्रवीण सिंह बिष्ट ने कहा यह संगोष्ठी मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए उपयोगी सिद्ध हुई है। समाज के उत्थान के लिए ये आवश्यक है। मानवाधिकार का विशेष महत्व है। इस गंभीर विषय को लेकर आगे भी बात होनी चाहिए। उन्होंने आयोजकों को संगोष्ठी के लिए बधाई दी।

मुख्य अतिथि रूप में कुलपति प्रो जगत सिंह बिष्ट ने आजादी के उपरांत मानवाधिकार पर विस्तार से बात हुई है। अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा के लिए मानवाधिकार उपयोगी हैं। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए मानवाधिकार आवश्यक हैं। पुनीत भावनाओं, मानव मूल्यों, अधिकारों, कर्तव्यों, समानता को लेकर मानवाधिकार प्रासंगिक हैं। जियो और जीने दो को चरितार्थ करने में मानवाधिकार का योगदान है। उन्होंने साहित्यक संदर्भों को उदाहरण देकर मानवाधिकार को स्पष्ट किया।
संगोष्ठी के अध्यक्ष एवं संयोजन प्रो. विद्याधर सिंह नेगी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय समाज में कई रूढिवादिता व्याप्त थी, उनको दूर करने में मानवाधिकार का योगदान अविस्मरणीय है। समाज में निम्न वर्ग के साथ अभद्र व्यवहार हुआ है, ऐसे में ज्योतिबाफुले जी जैसे लोगों ने कार्य किया है। वहीं से मानवाधिकार को लेकर जागरूकता बढ़ी है। संस्कृति में मानवाधिकार की आवश्यकता नहीं थी किंतु अब मानवाधिकारों की बहुत जरूरत है।

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