बीए प्रथम वर्ष की छात्रा हेमलता लटवाल द्वारा “नशे ” पर लिखा लेख
“मादक पदार्थों की गिरफ्त में
घिरे हुए हमने भी देखा है
कर्ज में डूबे हुए हिंदुस्तान का
बिक चुके आत्मसम्मान का
फलते फूलते भ्रष्टाचार का
चार कदम गुलामी की ओर।”
शाप और अभिशाप दोनों समानार्थक होते हुए भी अपने में अंतर छुपाए हुए हैं। शाप वस्तु विशेष के लिए जबकि अभिशाप जीवन भर घुन की भांति लगा रहता है। आज प्रत्येक मानव सुख प्राप्ति के लिए चिंतन मनन से बहुत दूर है, भय, कायरता और असफलता उसके मस्तिष्क में छाई रहती है। अपनी कमियों गलतियों को मिटाने के लिए वह प्यासे मृग की भांति कभी सिनेमाघर की ओर मुड़ता है , कभी फोन की ओर ध्यान लगाता है तो कभी कुछ अन्य मन बहलाने वाले साधनों की ओर ध्यान देता है। जब यहां भी उसे शांति नहीं मिलती तो वह मादक पदार्थों की ओर रुख मोड़ लेता है, जहां न शोक है ,ना दुख है, जहां सदैव बसंत राग अलापे जाते हैं, धीरे-धीरे वह समाज से तिरस्कृत होकर निंदा और आलोचना की वस्तु बन जाता है। आज मनुष्य ने अपनी मूर्खता से इस मादक पदार्थों को अत्यधिक प्रयोग कर इन्हें सामाजिक अभिशाप का स्वरूप प्रदान कर दिया है। नशे के चक्कर में कई घरों को उजड़ते हुए देखा है, घरवालों को समाज में अपमान का शिकार होना पड़ता है किंतु मादक पदार्थों का प्रयोग करने वाले व्यक्ति पर इन सबका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
आज नशीले पदार्थों के कारण समाज के नैतिक स्तर का पतन हो रहा है, युवाओं को जीवन में तनाव से बचने का एकमात्र यही साधन नजर आ रहा है जिसका परिणाम है दुर्घटनाओं में इजाफा होना, बलात्कार का बढ़ना जो कि एक सभ्य समाज पर कलंक है अधिकतर शराब के नशे में ही है। समाज, परिवार का भविष्य तो चौपट हो गई रहा है, साथ में युवा पीढ़ी भी बर्बाद हो रही है। दिल दहल जाता है यह सब देख कर जिस युवा पीढ़ी के हाथों में कल देश दुनिया का भविष्य है वही युवा पीढ़ी आज नशे के चक्कर में अपना विनाश कर रही है। यही सब चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा जब बच्चे दूध की जगह कोकीन और चरस मांगेंगे।
आज देश के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह स्वयं तो इस बुराई से दूर रहे हैं और दूसरों को भी इसका आदी बनने से रोके। नशे में फंसती युवा पीढ़ी को समझाना होगा-
“छोड़ दे अब टिमटिमाना भोर का तारा है तू,
रात के यौवन सी ढलती रहेगी जिंदगी,
इस भ्रम को छोड़ दे मत समझ इसको अंचल,
हिमशिला सम ताप में गलती रहेगी जिंदगी।”