नारी म्यरा पहाड की
पैली सोर मोल तब गयी घासक,
लाखडु का भारा लैक,पकाइ रवड्दा रातक,
रवड्दा पकी गैन,खाणु भी खयाली थे,
खोली किताब,पर लैगी थक,
वन्गदा-वन्गदा सेगी थे!
व्हे बडी तब भुमाता,पहुचंगे अठारोहं साल,
खोजी नौन्याल,करयाली ब्यो,
हैका घर जैक भी,दुबारा बौडी दिन पुराणा
सोर मोल फिर घासक,
लाखडु का भारा लैक,पकाइ रवड्दा रातक,
यनु प्राण पायी तीं देवी न,
रतव्याणी हैका दिन की थे,पिछ्ली रतव्याणी चरों
जिन्दगी भर झेली दुख,कखन दिखण छ: सुख,
ऊं गदरों और ऊं खालों का बीच,
बण और ऊं ढोडों का बीच,
सैजान्दी नारी, म्यरा गढ की
सदानी तै,सदानी तै!!!
दीप नेगी